दिगंबर जैन समाज ने मनाया उत्तम तप धर्म

संवाददाता सार्थक नायक

 

गुरसरांय (झांसी)- श्री 1008 पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर गुराई बाजार गुरसरांय में बड़े धूमधाम से दश लक्षण पर्यूषण पर्व मनाया जा रहा है दश लक्षण पर्यूषण पर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म के अवसर पर आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य भिंड से पधारें पंडित पंकज जैन एडवोकेट ने अपने मुखारविंद से सभी को अभिषिन्चित करते हुए बताया उत्तम तप धर्म क्या होता है तप धर्म की परिभाषा है तप्यते इति तप:जिसके माध्यम से आत्मा को तपाया जाए उसे तप कहते हैं तप दो शब्दों से मिलकर बना है त-वर्ण कह रहा है जो तार दे और प-वर्ण कह रहा है जो पार करा दे अर्थात तप के अंदर तारने की और संसार रूपी समुद्र से पार कराने की शक्ति होती है जब व्यक्ति के जीवन में सम्यक प्रकार से तप होता है तो वह तप उसको संसार समुद्र से पार करा देता है जो कषायों को वास्तव में शांत करना चाहते हैं वह प्रतिकूलता में भी अनुकूलता लाने का प्रयास तप के द्वारा करते हैं ।

शास्त्रों में उदाहरण आया इच्छा निरोध: तप: – इच्छाओं का निरोध(रोकना) करना ही तप है एवं स्वाध्याय: परमं तपः कहा है इस कलिकाल में मन रूपी मर्कट को बस में करने के लिए स्वाध्याय को ही परम तप कहा गया है स्वाध्याय का अर्थ होता है स्वयं का अध्याय इसके पांच भेद हैं पहला वाचना-शास्त्रों को विनय पूर्वक शुद्ध पढ़ना दूसरा प्रच्छना- शंका हो तो गुरु से पूछना तीसरा अनुप्रेक्षा जो पढ़ा है उसका बार-बार चिंतवन करना चौथा आम्नाय पढ़ें हुए विषय को कंठस्थ करना पांचवा धर्मोपदेश- धर्म का उपदेश करना पूज्य गुरुदेव विशुद्ध सागर जी कहते हैं की सोना जितना तपता है उतना ही चमकता है बिना तपे स्वर्ण शुद्ध नहीं होता मिट्टी कलश नहीं बनती यहां तक की घर में दाल चावल भी बिना तपे नहीं पकते इसी प्रकार से आत्मा शुद्ध दशा या परमात्म अवस्था को बिना तपे प्राप्त नहीं हो सकती सभी बंधुओ से कहना है कि यह शरीर आपको मिला है तो तपने के लिए मिला है ना कि इंद्रिय सुख भोगने के लिए आचार्य भगवान कहते हैं यह तन पाय महातप की जैया में सार यही है। श्री 1008 पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर गुराई बाजार मैं चल रहे दश लक्षण महापर्व के कार्यक्रम में आगरा से पधारे संगीतकार विवेक जैन एंड पार्टी ने भक्तों को भाव विभोर करते हुए सातवें दिन उत्तम तप धर्म के अवसर पर सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य विनोद,नेहिल सिंघई,आहिल सिंघई ने भगवान को पांडुक शिला पर विराजमान किया तत्पश्चात प्रथम मस्तिकाभिषेक भी किया प्रथम अभिषेक,उत्कर्ष सिंघई,वीरेंद्र जैन सेरिया,अजय सिघंई,पंकज जैन सेरिया एवं प्रथम शांति धारा विजय सिंघई द्वितीय शांतिधारा विनोद सिघंई को प्राप्त हुआ तत्पश्चात आरती करने का सौभाग्य अरविंद,चंचल सिंघई को प्राप्त हुआ।दीपक जैन नुनार,पदम जैन,मुदित,सक्षम,अनंत जैन नुनार,सम्यक जैन नुनार,सुनील सिंघई,सजल,क्रेश जैन,सन्टू जैन,गुलाबचंद जैन,महेंद्र सिंघई,हुकुमचंद जैन,डीकू जैन,आलोक सरसैड़ा,मिलाप जैन नुनार सभी सैकड़ों की संख्या में महिला,पुरुष,बच्चे ने धर्म लाभ लिया वहीं रात्रि की बेला में जिन शासन प्रभावना संघ द्वारा जिन धर्म के सांस्कृतिक नाटिका करके सभी भक्तों को मनोरंजित किया।

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